Wednesday, June 23, 2010

लहरों से लौटकर...

टकरा गए ख्वाब
इस बार,
समंदर की लहरों से
सीधे सीना तान कर,
चकनाचूर भी हो गए,
ना वक्त बचा पाया इन ख्वाबों को
ना परोस पाया कभी
मन के आईने में,
बस कुछ धुंधलकों में दम घुट गया

लहरों में,
टूटकर गिरते ख्वाब के टुकड़ों को
बटोर नहीं सका मैं,
नम आंखों में समेट नहीं सका
यादें,
बस गला भर गया
और फिसल गई हथेली की रेत

                                                                                                                --अमृत उपाध्याय

Tuesday, June 15, 2010

रेलवे की बदहाली पर एविएशन की चांदी







टिकट नहीं मिल रहे हैं आजकल...जल्दी में जाना है तो भूल जाइए,तत्काल में टिकट लेना सपना हो गया है जिसका पूरा होना बेहद मुश्किल है...ऐसे में टिकट लें तो कैसे..सोचकर रोआं सिहर जा रहा है कि तत्काल में टिकट कैसे हो..किस दरबार पर दस्तक दी जाए.....ममता दीदी के राज में हालत खस्ता है,जो लोग मुंह भर-भर के लालू यादव के रेलवे राज को कोसते रहे थे वो भी अब कह रहे हैं लालू यादव रेलमंत्री थे तो ठीक था, कम से कम कुछ जुगाड़ हो जाता था...वीवीआईपी कोटा में कटौती कर के 24 पर ला दिया गया है तो सोर्स पैरवी का भी जमाना लद गया...अभी आरा जाना था तो मैंने भी खूब नाक रगड़ी टिकट नहीं मिला, खैर भला हो इस नौकरी का जिसकी बदौलत बने सरोकार की वजह से जा सका..अब उड़ीसा जाना है ...नक्सली लगातार ट्रेनों को निशाना बना रहे हैं..नक्सली इलाकों से होकर गुजरने वाली ट्रेनों को अब रात में नहीं चलाया जा रहा है...समस्या के समाधान का ये तरीका बेहद आश्चर्यजनक है..सरकार एक तरफ लोहा लेने का दावा करती है दूसरी तरफ घुटने टेकने वाले डिसीजन्स....चले जाइए किसी भी वक्त उन ट्रेनों में या फिर दिल्ली स्टेशन पर पता चल जाएगा सुरक्षा के लिए सरकार के हाय हाय का सच...सरकार ने ट्रेन या प्लेटफॉर्म्स की सुरक्षा बढ़ाने की बजाए ट्रेन को 24-25 घंटा देरी कर चलाने का निर्णय ले लिया..मतलब सुरक्षा हर कीमत पर....आईआरसीटीसी का साइट जब निराश कर देता है तो तुरंत उंगलियां टिपटिपानी पड़ती हैं फ्लाइट की पोजिशन देखने के लिए। इस बार उड़ीसा जाने के लिए मेक माई ट्रिप का साइट खोला, सोच रखा था मैंने,चार या साढ़े चार हजार या फिर ज्यादा से ज्यादा पांच हजार रूपए जेब से ढीले करने पड़ेंगे, पहुंच जाउंगा जगह पर, लेकिन नहीं कम से कम सात हजार के करीब का टिकट....अब सवाल ये कि आखिर हरेक रूट की तमाम ट्रेनों के पैक होने के बावजूद स्पेशल ट्रेनों की संख्या में इजाफा नहीं करना, मीडिया द्वारा दलालों का टिकट ब्लैक करने की खबर दिखाना और रेलवे की उसपर हामी के बावजूद धड़ल्ले से दलालों का रेलवे पर राज, ममता दीदी का रेलवे की तरफ पीठ कर बंगाल की सियासत पर ढीठ गड़ाए रखना,क्या ये सब महज संयोग है...भगवान करें संयोग ही हो लेकिन कुछ दिन पहले एयर इंडिया को लेकर मीडिया में आ रही खबरों पर जरा फिर से गौर करिए एक बार, फ्लैशबैक में जाकर, एयर इंडिया की हालत ऐसी है कि उसे मदद की दरकार पहले से ही थी, एविएशन लाइन भारत में बुरे दौर से गुजर रहा है, सरकार ने आर्थिक मदद को लेकर हाथ खड़े कर दिए, एयर इंडिया के कर्मचारी रोज हड़ताल पर ही रहते हैं, तमाम बडे उद्योगपति एयरलाइंस में जिनका इन्वेस्टमेंट है और जिनके सरकारी नुमाइंदों के साथ सरोकार को देखने से ज्यादा समझना पड़ता है, उनकी सरकार से गुहार....रेलवे में टिकट की मारामारी के बाद फ्लाइट्स के लिए लोग अमूमन ट्राई करते हैं, वैसे लोग भी जो अक्सरहां तो फ्लाइट से नहीं चलते हैं लेकिन इतना खर्च वहन कर सकते हैं कि जरूरत ज्यादा हो तो उड़ान भर सकें....ऐसे में कहीं मिडिल क्लास के पॉकेट से पैसे उगलवाने का ये सरकारी फॉर्मूला भी हो सकता है इससे इनकार नहीं किया जा सकता...क्योंकि रेलवे की बदहाली पर एविएशन की चांदी है इस वक्त...तो जरा सोचिए कि भोपाल गैस कांड के आरोपी वॉरेन एंडरसन को देश से भगा देने वाली कांग्रेस की सरकार क्या एविएशन को बुरे दौर से उबारने के लिए ये चालाकी नहीं कर सकती...