तेरे भीतर
थोड़ा-थोड़ा
मैं बसता था।
आँखों में तेरे
थोड़े आँसू
मेरे थे।
तेरे धड़कन की
थोड़ी साँसें
मेरी थीं।
चेहरे में तेरे
मैं भी थोड़ा दिखता था।
रातों में चांद की
थोड़ी चांदनी
मेरी थी।
तेरे सपनों में
मेरी यादों का
हिस्सा था।
तेरे भीतर का
थोड़ा-सा मैं
टूट गया हूँ।
तुझमें खुद के
बिखरे टुकड़ों को
ढूँढ रहा हूँ।
-- अमृत उपाध्याय