Thursday, March 11, 2010

बंदूक की फसल

                    --अमृत उपाध्याय
घर के पिछुआड़े,
बोई थी कुछ बन्दूकें
कुछ दाने और कारतूस।


इस बार घर गया
तो खोजा,
बन्दूक की फसल
बर्बाद हो गई शायद।


पता नहीं क्यों,
नहीं उगे बंदूक
और ना दाने कारतूस बन पाए।


क्यों न रोता,
फफक कर रोया,
अपनी जहरीली हंसी को भूल,
वही जिसने झुलसा दी शायद
बंदूक की फसल...।
                             
        


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