कशमकश कि भरी दुपहरी में भींगता रहूं या बरगद की छांव में जलूं...
बुनी हुई बातों में
साँसें नहीं होतीं।
ठहाके,सिसकियाँ
उत्साह,गुदगुदी
दुःख,पीड़ा
आस,उम्मीद
थकान,आवेग
सबके बावजूद
मुर्दा होती हैं
बुनी हुई बातें।
-अमृत उपाध्याय
(Amrit Upadhyay)
Right sirLove 💕 U sir
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ReplyDeleteLove 💕 U sir