Saturday, May 22, 2021

बात अटकी है जो सीने में

                                              

            -अमृत उपाध्याय

रात बेचैनी की गिरफ्त में जकड़ी है बहुत

गिनती साँसों की भी बेमेल लग रही है बहुत

खौफ़ हर नब्ज़ पर कब्ज़ा जमा रहा है आज

ख्वाब एक-एक कर अब छोड़ने लगे हैं साथ

ये कैसा दौर है, अब तुमसे मैं क्या-क्या कहूँ

वक़्त को आज़माने की जिद्द बस छोड़ दो अब

वक़्त की साजिशों की परतें खुल रहीं देखो

तुमने इक बात जो यूँ ही कही थी मुझसे कभी

वही इक बात आज अटकी है मेरे सीने में।


सिलसिला बातों का बेमोड़ ही ठहरे न कहीं

मैंने समझाईं तुम्हें अब तलक जितनी बातें

याद करना उन्हें जो तुमने अनसुनी की थीं

मेरी बातों में फ़लसफ़े भले न मिल पायें

वक़्त की कद्र करना सीख लो बस काफी है

वक़्त को आज़माने की जिद्द अब छोड़ ही दो

तुमने इक बात जो यूँ ही कही थी मुझसे कभी

वही इक बात आज अटकी है मेरे सीने में।


ज़्यादा मायूस, नाउम्मीद तुम न हो जाना

बातें झुठलाने की टकराहटें भी होंगी अभी

रौशनी आस की पाके मिल रहा है सुकून

हौसला खौफ़ को झटके से कर रहा बेदम

गहरी साँसों ने थामी है हरेक नब्ज़ की डोर

ख़्वाब जो बच गए हैं साथ नहीं छोड़ेंगे

सफ़र का आफताब तक पहुँचना बाकी है


पर तुमने इक बात जो यूँ ही कही थी मुझसे कभी

वही इक बात आज अटकी है मेरे सीने में।

  -अमृत उपाध्याय। (Amrit Upadhyay)

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