Friday, May 7, 2021

माँ की तालीम

            -अमृत उपाध्याय

बचपन से ही,

मैं जब भी कहीं जाता था घर से

 माँ से कहता था 

'मैं जा रहा हूँ'

जवाब में हर बार  कहती थी वो मुझे

' लौटकर आओ'


मैं सोचता था

हर बार मेरे जाने की ख़बर में

'आना' क्यों तलाशती है माँ?


उसे पता तो है 

जाने और लौटने का फ़र्क़

 कि जाना तय है

अनिश्चितता, लौटने में है।


झेला है माँ ने 

जाकर न लौटने का दुख

असह्य पीड़ा

शूल की तरह चुभन से उठता दर्द

 कभी न ख़त्म होने वाला

लौटने का इंतज़ार।


वो जानती तो है कि

लौटने को कह देने से

कोई लौट नहीं आता।


फिर यह महज कह देने भर की

रवायत नहीं होगी हरगिज़


कुछ पुख़्ता रहा होगा

 इन बातों का फ़लसफ़ा


जैसे-जैसे बचपन छूटता गया

समझ आता गया

माँ की बातों का मतलब,

 जाने और लौटने का फ़र्क


लौटता वो है 

जिसमें हो जीवटता

जिसे आता हो हालात से लड़ना

जो अंत तक नहीं छोड़ता उम्मीद 

जिसमें अंतिम दम तक 

हौसला बनाये रखने की हो ताक़त

जो नहीं टेकता घुटने अंतिम सम्भावना तक

जो होशोहवास में नहीं मानता हार


 मैं लौट आता हूँ हर बार

क्योंकि जब भी मैं जाता हूँ कहीं

माँ हर बार देती है 

लौट आने की तालीम मुझे।

             --- अमृत उपाध्याय

                (Amrit Upadhyay)


1 comment:

  1. एहसासों का सजीव चित्रण

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